महावीर जयंती | Mahavir Jayanti

जैन समुदाय के बीच सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार महावीर जयंती में से एक है और इसे भारत और दुनिया भर में भव्यता के साथ मनाया जाता है | यह त्यौहार भगवान महावीर के जन्म का स्मरण करता हे जैन पोराणिक कथाओ के अनुसार भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थकर है | यह त्यौहार २०२३ में ३ अप्रेल को मनाया जाएगा इस दिन शासकीय अवकाश भारत सरकार द्वारा घोषित किया गया हैं इस दिन अधिकांश व्यवसाय भी पुर्णतः बंद रहते हैं |

भगवान महावीर का जन्म

मान्यता के अनुसारभगवन महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पूर्व ईसा से 540वर्ष पहले वैशाली गणराज्य के कुण्डग्राम में अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार में हुआ था तीस वर्ष की आयु में महावीर नें संसार से विरक्त होकर राजवैभव को त्याग दिया और सन्यास धारण कर आत्मकल्याण पथ पर निकल गये 12वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त किया जिसके पश्चात उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया 72वर्ष की आयु में पावापुरी जिला नालंदा, बिहार से मोक्ष की प्राप्ति हुई इस दोरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमे उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार ,कुणिक और चेटक भी शामिल थे जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्म दिवस को महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता हैं |

महावीर जयंती से जुड़े तथ्य

भारतीय मान्यता के अनुसार जब दुनिया में तपस्या को कभी महसूस नहीं किया था जब दुनिया ने आमिर और गरीब के बीच मदभेदो को देखा था जो उस शुभ समय एक व्यक्ति था जो शांति और समृद्धि से भरा जीवन होने के मिशन को स्थापित करने के लिए प्रेरित था वह कोई और नहीं भारत में जैन धर्म के संस्थापक और अंतिम तीर्थकर महावीर जैन थे महावीर जयंती को जैन समाज में शुभ जयंती के रूप में मनाया जाता हैं जैन समुदाय मैं आज के दिन शुभ अवसर होने के नाते,महावीर जयंती को सभी जैन मंदिरों में विशेष रूप से उत्साह के साथ मनाया जाता है खासकर गुजरात के गिरनार और पलिताना में बहुत उत्साह और आनंद के साथ यह महापर्व मनाया जाता है कुछ लोग जैन सिद्धांत के गुणों को बताने के लिए मंदिर में व्याख्यान करते है पारम्परिक व्यंजन जैन समाज द्वारा महावीर जयंती पर तैयार किए जाते हैं और गरीबो को परोसे जाते हैं जैन धर्म के वर्तमान तपस्वी धर्म ने महावीर को पैगम्बर रूप में जाने जाना लगा 3.5 मिलियन से अधिक लोगो नें जैन धर्म को अपनाया वे सभी जीवो के प्रति अहिंसा का मार्ग अपनाते हैं अनजाने में साँस लेते समय किसी कीड़े को मारने की सम्भावना को रोकने के लिए जैन तपस्वी फेस मास्क का प्रयोग करते है |

महावीर जयंती का भारतीय इतिहास

मान्यता के अनुसार हिन्दू त्यौहार के 13वें दिन में चेत्र के 13वें दिन ब्रह्ममुहूर्त में सूर्योदय के बाद मनाया जाता है जो आमतोर पर मार्च के अंत या अप्रेल के आरम्भ में होता हैं | महावीर प्रभु का जन्म 599 ईसा पूर्व या 615 ईसा पूर्व में हुआ था जैन धर्म दिगम्बर स्कूल का कहना हैं की भगवन महावीर का जन्म 615 ईसा पूर्व में हुआ था लेकिन स्वेताम्बरो का माननाहैं की उनका जन्म 599 ईसा पूर्व में हुआ था हालाकि दोनों सम्प्रदायों का मानना हैं की महावीर सिद्धार्थ और त्रिशला के पुत्र थे किवंदंती के अनुसार ऋषभदेव नामक एक ब्राह्मण की पत्नी देवानंद में उनकी कल्पना की थी लेकिन देवताओ ने भ्रूण को त्रिशला के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया था स्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार उम्मीद की गई माँ को 14 शुभ सपने देखे गए थे पर दिगम्बर संप्रदाय के अनुसार यह 16 शुभ सपने देखे गये थे ज्योतिषियों नें इन सपनो की व्याख्या की और कहा की यह बच्चा या तो सम्राट होगा या बड़ा तीर्थकर होगा एक दशक से अधिक के लिए वह एक तपस्वी था जो की भटक-भटक कर भोजन के लिए भिक्षा मांग रहा था जो की धोती पहना हुआ था फिर उन्होंने आत्मज्ञान पाया तीर्थकर बने और अपनी मृत्यु से पहले 30 साल तक पढ़ाया था |

भगवन महावीर की तपस्या और उपदेश

भगवान महावीर का साधना काल 12वर्ष का था दीक्षा लेने के उपरांत भगवन महावीर ने दिगम्बर साधु की कठिन दिनचर्या को स्वीकार किया और पुर्णतः निर्वस्त्र रहे स्वेताम्बर संप्रदाय जिसमे साधु सफ़ेद कपडे धारण करते हैं उनके अनुसार भी महावीर दीक्षा उपरांत कुछ समय छोड़ कर निर्वस्त्र रहे और उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति ही दिगम्बर अवस्था में की बाकी समय उन्होंने अपने पुरे साधना काल के दोरान भगवन महावीर ने कठिन तपस्या की और कई वर्षो तक मोन रहे इन वर्षो में उन पर कई प्रकार के उपसर्ग भी हुए जिनका उल्लेख जैन समाज के कई प्राचीन जैन ग्रंथो में मिलता हैं जैन ग्रंथो के अनुसार केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान महावीर नें उपदेश दिया उनके 11 मुख्य शिष्य थे जिनमे प्रथम इंद्रभूति थेजैन ग्रन्थ उत्तरपुराण के अनुसार भगवान महावीर स्वामी ने समवसरण में जीव आदि सात तत्व , छह द्रव्य संसार और मोक्ष के कारण तथा उनके फल का आदि उपायों से वर्णन किया था|

प्रभु महावीर के पांच व्रत

जैन मुनि, सभी व्रतो का पूर्ण रूप से पालन करते हैं इसलिए उनके महाव्रत होते हैं और श्रावक और श्राविका इनका एक देश में पालन करते हैं इसलिए उनके अणुव्रत कहे जाते हैं जैन धर्म में मुख्यतःपांच व्रत आते हैं जो इस प्रकार हैं |

सत्य- सत्य के विषय में में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष ! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ जो बुद्धिमान सत्य की आज्ञामें रहता है वह मृत्यु को तेर कर पार कर जाता हैं |

अहिंसा- इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक,दो,तिन,चार,और पांच इन्द्रियों वाले जीव) हे उनकी हिंसा मत कर,उनको उनके पथ पर जाने से ना रोको उनके प्रति अपने मन में सदा दया का भाव रखो और उनकी रक्षा करो यही अहिंसा का सन्देश भगवान महावीर अपने उपदेशो से हमें देते है |

अचोर्य- दुसरे की वस्तु बिना उसे दिए हुये उसे ग्रहण करना उसे जैन ग्रंथो में चोरी कहा गया हैं |

अपरिग्रह- परिग्रह पर भगवन महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजो का संग्रह करता हैं या दुसरो को ऐसा संग्रह कराता हैं या दुसरो को ऐसा संग्रह करने की हिम्मत या सम्मति देता हैं तो उसको दुखो से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता यही सन्देश अपरिग्रह के माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाह्ते हैं |

ब्रह्मचर्य- भगवान महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते है की ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या,नियम,ज्ञान,दर्शन,चरित्र,संयम और विनय की जड़ हैं तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या हैं जो पुरुष स्त्रियोसे संबंध नहीं रखते वे मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसर करते हैं |

साहित्य ज्ञान एवं काव्यात्मक 

.आचार्य समन्तभद्रविरचित के अंतर्गत “स्वयंभूस्तोत्र”चोबीस तीर्थकर भगवानो की स्तुति हैं इसमें आंठ श्लोक भगवन महावीर को समर्पित हैं |

.आचार्य समन्तभद्र विरचित के अनुसार “युक्तानुशासन” एक काव्य रचना हैं जिसके अंतर्गत ६४ श्लोको में तीर्थकर महावीर प्रभु की स्तुति की गई हैं |

. आचार्य मुनि प्रणम्यसागर जी के अनुसार “वर्धमान स्तोत्र”में ६४ श्लोको में महावीर स्वामी की स्तुति की गई हैं मुनि प्रणम्यसागर जी ने वीरष्टकम भी लिखा हैं |

.महाकवि पदम कृत महावीर रास- इसका रचना काल वि.स. की 18वीं सदी का मध्यकाल हैं इसका प्रथम बार हिंदी अनुवाद और संपादन डॉ विद्यावती जैन जी द्वारा किया गया था यह 1994 में प्राच्य श्रमण भारती द्वारा प्रकाशित पुस्तक में किया गया था |

स्वामी महावीर का विवाह

दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर स्वामी बाल ब्रह्मचारी थे भगवान महावीर विवाह नहीं करना चाहते थे क्योंकि ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था भोग विलास में उनकी रूचि नहीं थी परन्तु इनके माता-पिता जबरजस्ती उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह करवाना चाहते थे दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्होंने इस विवाह के लिए मन कर दिया था पर श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार इनका विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ सम्पन हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई जिसका युवा होने पर राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ |

भगवान महावीर की प्रतिमाएं

भगवान महावीर की कई प्राचीन प्रतिमाएं देश और विदेश के कई संग्रहालयो में विघमान हैं जिनके दर्शन सभी भक्तो को होते रहते हैं मुख्यतः भगवान महावीर की विशालतम प्रतिमा पटनागंज मध्यप्रदेश में पद्मासन मुद्रा में स्थापित हैं एवं तमिलनाडु,थिराकोइल में भी भगवान महावीर की प्रतिमा विघमान हैं इसके अलावा महाराष्ट्र के एल्लोरा गुफाओ में भी भगवान महावीर की प्रतिमा मोजूद हैं कर्नाटक की बादामी गुफाओ में भी भगवान महावीर की प्रतिमा स्थित हैं इन सभी स्थानों पर दर्शनार्थी दर्शनलाभ प्राप्त करते हैं |

भगवान महावीर स्वामी के विचार

क्षमा : क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं में सब जीवो से क्षमा चाहता हूँ जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मित्रभाव हैं मेरा किसी से कोई बेर नहीं हैं में सच्चे ह्रदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ सभी जीवों से में सारे अपराधो की क्षमा मांगता हूँ सब जीवो ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं उन्हें में क्षमा करता हूँ वे यह भी कहते हैं मेने अपने मन में जिन-जिन पापो की व्रतियो का संकल्प किया हो वचन से जो-जो पापव्रतियां प्रकट की हो और शरीर में जो-जो पापव्रतियां की हो मेरी वो सभी पापव्रतियां विफल हो एवं मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों |

धर्म :धर्म सबसे उत्तम मंगल हैं अहिंसा,संयम और तप ही धर्म हैं महावीर जी कहते हैं जो धर्मात्मा हैं जिनके मन में सदा धर्म रहता हैं उसे देवता भी नमस्कार करते हैं |

भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म,सत्य,अहिंसा,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह और क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया हैं त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का मुख्य सर था |

भगवान महावीर के अनमोल वचन

  • महावीर स्वामी ने कहा है कि मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म अहिंसा हैं अत: हमें हमेशा जियो और जीने दो के सन्देश पर कायम रहना चाहिए |
  • प्रभु महावीर ने हमें स्वयं के दोषों से लड़ने की प्रेरणा दी हैं वह कहते हैं स्वयं से लड़ो,बाहरी दुशमन से क्या लड़ना वह जो स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी |
  • हर मनुष्य की आत्मा अपने आप में परिपूर्ण और आनंदमय हैं आनंद को कभी बाहर से प्राप्त नही किया जा सकता आत्मा अकेले आती हैं और अकेले ही चले जाती हैं,न कोई उसका साथ देता हैं और न ही कोई उसका मित्र बनता हैं |
  • मनुष्य के हमेशा दुखी होने की वजह खुद की गलतियां ही हैं जो मनुष्य अपनी गलतियों पर नियंत्रण पा लेता हैं वही मनुष्य सच्चे सुख की प्राप्ति कर सकता हैं |
  • हर जीवित प्राणी के प्रति दया भाव ही अहिंसा हैं घृणा से हम न केवल अपना विनाश करते हैं बल्कि दुसरो के लिए भी कष्ट उत्पन्न करते हैं |
  • अगर अपने कभी किसी का भला किया हो तो उसे हमेशा के लिए भूल जाना चाहिए वही अगर कभी किसी ने आपके साथ बुरा किया हो तो उसे भी भूल जाना चाहिए तभी मनुष्य शांत रह कर अपना जीवनयापन कर सकता हैं
  • आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं हैं असली शत्रु अपने अंदर ही रहते हैं वे शत्रु हैं    लालच,द्वेष,क्रोध,घमंड,आसक्ति और नफरत | खुद पर विजय प्राप्त करना लाखो शत्रु पर विजय पाने से बेहतर है |
  • महावीर ने बताया हैं की ईश्वर का अलग से कोई अस्तित्व नहीं हैं हर कोई सही दिशा में चल कर देवत्व को प्राप्त कर सकता हैं प्रत्येक जीव स्वतंत्र हैं, कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता हैं आपात स्थिति में मन को कभी भी डगमगाना नही चाहिए उसका डटकर सामना करना चाहिए |
  • क्रोध हमेशा अधिक क्रोध को जन्म देता हैं और क्षमा और प्रेम हमेशा अधिक क्षमा और प्रेम को जन्म देते हैं मनुष्य को हमेशा क्षमा और प्रेम का विचार अपनाना चाहिए इससे जीवन को न केवल सरल किया जा सकता हैं बल्कि सम्मान से वह सब कुछ पा सकता हैं |
  • अज्ञानी कर्म का प्रभाव खत्म करने के लिए लाखो जन्म लेता हैं जबकि अध्यात्मिक ज्ञान रखने और अनुशासन में रहने वाला व्यक्ति एक क्षण में उसे खत्म कर देता हैं|

स्वामी महावीर मोक्ष : भगवान महावीर ने ईसापूर्व 527,72वर्ष की आयु में बिहार के पावापुरी (राजगीर) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त हुआ |

FAQ :

  1. क्या महावीर जयंती पर अवकाश होता है ? : जैन समुदाय के बीच सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार में से एक हे और इसे भारत और दुनिया भर में भव्यता के साथ मनाया जाता है इस लिए इस दिन शासकीय अवकाश भारत सरकार द्वारा घोषित किया गया हैं इस दिन अधिकांश व्यवसाय भी पुर्णतः बंद रहते हैं |
  2. महावीर जयंती क्यूँ मनाई जाती है ?: यह त्यौहार भगवान महावीर के जन्म का स्मरण करता हे जैन पोराणिक कथाओ के अनुसार भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थकर है और इसी वजह से जैन समुदाय के बीच सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार में से एक है |
  3. कौन है भगवान महावीर जिनके नाम से महावीर जयंती मनाई जाती है ? : जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर व जैन पोराणिक कथाओ के अनुसार स्वामी महावीर जैन धर्म के तीर्थकर है |
  4. भगवान महावीर का जन्म स्थान : मान्यता के अनुसारभगवन महावीर का जन्म कुंडलपुर को जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर का जन्म स्थान माना जाता है |

निष्कर्ष (Conclusion) :

महावीर जयंती जैन समुदाय के बीच सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार में से एक हे और इसे भारत और दुनिया भर में भव्यता के साथ मनाया जाता है | यह त्यौहार भगवान महावीर के जन्म का स्मरण करता हे जैन पोराणिक कथाओ के अनुसार भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थकर है | यह त्यौहार २०२३ में ३ अप्रेल को मनाया जाएगा इस दिन शासकीय अवकाश भारत सरकार द्वारा घोषित किया गया हैं इस दिन अधिकांश व्यवसाय भी पुर्णतः बंद रहते हैं |

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