इस पोस्ट में हम आपको विश्वप्रसिद्ध भारतीय वनस्पति सर्पगंधा (Sarpgandha) के बारे में बताने वाले है | इसका बहुत अधिक मात्रा में विदेशों को निर्यात किया जाता है । इसकी अनेक जातियां हैं और आमतौर से इसकी जडे प्रयोग में आती हैं किन्तु टहनियों और पत्तों में भी इसके क्रियाशील तत्त्व पाए जाते है | निर्माण शालाआं की मांग को देखते हुए अब इसकी खेती भी की जाती है । इसके बीज भी बोए जाते है और यह शाखाओं को काट करके भी लगाई जातीं है । यह हिमालय की तराई, पंजाब, देहरादून, गोरखपुर, पटना, भागलपुर, नेपाल की तराई, आसाम, मद्रास, दक्षिण महाराष्ट्र, कन्नड़ प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में प्रचुरता से पाई जाती है । इस आर्टिकल में आप अंत तक बने रहिये जिसमे हम आपको सर्पगंधा से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है |
सर्पगंधा लाभ, उपयोग, खुराक, दुष्प्रभाव | Sarpgandha Benefits, uses, dosage & side effects.
सर्पगंधा के चिकने और खूबसूरत क्षुप होते हैं । इनकी ऊंचाई 2 से 2 ½ फूट तक होती है । इसका तना बेलनाकार होता है । छाल का रंग पीला होता है । इसको तोड़ने पर दूध जैसा पीलापन लिए हुए चिपचिपा रस निकलता है पत्तियों की लम्बाई 2 से 7 इंच तथा चौडाई प्राय: 1 मे 2 इंच होती है । ये चमकीली, भालाकार या लटवाकार और नुकीले अग्रभाग वाली होती हैं । हरेक ग्रंथि पर 3 से 5 तक पत्र होते हैं जो आमने-सामने स्तिथ होते हैं ।
सर्पगंधा फूलने की अवधि काफी लम्बी होती है । अप्रेल से लेकर फूल निकलते रहते है, फूल ¼ से ½ इंच तक व्यास वाले एकी या द्विखंडी सफेद लाल आभा वाले पर बाद मे श्याम वर्ण वाले होते है।
सर्पगंधा विविध नाम | Sarpgandha Different Name
संस्कृत – सर्पगन्धा नाकुली, चंद्रिका आदि । हिन्दी-धवल, बरुआ, छोटा चांद, धन वरुआ, सेतवड़वा, सर्पगन्धा आदि। अनेक जगहों में इसको पागल की दवा नाम से जाना जाता है । लेटिन में इसे राउवाल्फिया सर्पेंटीना कहते हैं ।
सर्पगंधा की उपयोगी अंग – छाल युक्त जड़ ।
सर्पगंधा (Sarpgandha) का संग्रह तथा संरक्षण
जब सर्पगन्धा के पौधे 3-4 वर्ष के हो जाते हैं तभी शीत ऋतु में मिट्टी आदि हटाकर इसकी जड निकाली जानी चाहिए । फिर इसे छाया में सुखाकर ढनकन बन्द पात्रों में सुरक्षित रखें । यह 2 वर्ष तक खराब नहीं होतीं है।
सूखी सर्पगन्धा की पहचान – बाजार में सूखी सर्पगन्धा में मिलावट हो सकती है । अत: पहचान जान लेना चाहिए । इसकी जड़े प्राय: ¼ से ½ इंच मोटी हो सकवी है । रंग पीलापन लिए मटीला भूरा । ऊपरी छाल वैसी ही लगभग नर्म होती है जैसी कि कार्क मुलायम रहती है । इन पर लम्बाई की तरफ़ सीधी दरारे सी नजर आती हैं । टुकडों को तोड़ने पर अन्दर की लकडी सफेद और उसमें स्पंजी छेद जैसे दिखाई पडते हैं । इनका स्वाद कडवा होता हैं, पर खुशबू-बदबू कुछ नही होती है।
सामान्य मात्रा – छाल युक्त जड़ सामान्य रूप से 1/4 से 1/2 ग्राम तक । विशेष स्थितियों और नींद आदि लाने के लिए 1 ग्राम से 2 ग्राम तक भी दे सकते हैं ।
सर्पगंधा (Sarpgandha) गुण-धर्म :
यह प्राचीन काल से ही अनिद्रा तथा उन्माद आदि रोगों पर प्रयोग की जाती रही है । तथापि पिछले अनेक वर्षों से इसके गुणों को जानमान कर अनेक मानसिक स्तिथीयो ओर रक्तचाप आदि पर विश्वभर में इसका व्यापक प्रयोग होने लगा है । यह तिक्त, कटु, रुक्ष, उष्णवीर्य, निद्राकर, शूलहारी, दीपन, पाचन, मानसिक विक्षोभ नाशक, हृदयावसादक तथा उन्माद, मिरगी, विभिन्न मानसिक रोगों तथा भ्रम आदि को दूर करने वाली है ।
सर्पगंधा (Sarpgandha) की क्रिया हृदय पर अवसादक होती है और सूक्ष्म रक्तवाहिंनिया विस्फारित हो जाती है जिससे रक्त का दवाब (ब्लड प्रेशर) कम हो जाता हैं । चूकि हृदय पर इसका प्रभाव अवसादक होता है अत: इसे पागलपन के उन्ही रोगोयों को सेवन करना चाहिए जो उत्तेजित स्वभाव और आक्रामक प्रकृति के हों । जो पागल रोगी दुर्बल, शांत स्वभाव का और स्वयं ही अवसाद ग्रस्त हो उन रोगियों को इसे सेवन कराने से लाभ नहीं होता बल्कि रोगी और अधिक कमजोर हो जाता है । सर्पगंधा का अवसादक प्रभाव वहुत धीरे-धीरे होता है अत: यह रोग के प्रारम्भ में (उग्र या एक्यूट अवस्था में) लाभप्रद नहीं होती । वास्तव में यह औषधि पुराने मानसिक रोगियों को अथवा चिंताग्रस्त व्यक्तियों को शांति पहुंचाने के लिए अधिक उपयुक्त पाई गई है । इसके सेवन से मस्तिष्क को चैन-सा मिल जाता है । तेज ज्वर में इसके सेवन से अशान्ति, मोह और प्रलाप दुर होकर रोगी को नोंद अच्छी तरह आ जाती है तथा साथ ही ज्वर की तेजी भी कम होती है । खांसी, दमा तथा आंतों में जखम के रोगियों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए ।
शास्त्रीय योग – सर्पगन्धा घन बटी, सर्पगंधा चूर्ण, सपैनंधा योग आदि ।
सर्पगंधा (Sarpgandha) विविध प्रयोग तथा उपयोग
- गहरे-पीत वर्ण के चतुर्थक एनहाइड्रोनियम समाक्षार |
- मध्य प्रबल इण्डोलीन क्षार |
- कमजोर समाक्षारीय इण्डोल क्षार, अंत की दो श्रेणियां वर्णहीन होती हैं।
सर्पगन्धा घन बटी – सर्पगन्धा 10 किलों, खुरासानी अजवायन के वीज या पत्ती 2 किलों, जटामांसी 1 किलो और भांग 1 किलों । इन सबको जौकुट करके इसके आठ गुने पानी में मन्दी आंच पर पकाएं और हिलाते रहें । जब जल का आठवा भाग वाकी रह जाये तो ठंडा होने पर दो बार कपड़े से छान कर फिर मन्दी आंच पचं पकाएं । जब क्वाथ गाढा होकर खोंचे से चिपकने लगे तो नीचे उतार कर धूप में सुखा लें । जब गोली बनने योग्य हो जाए तब उसमें 100 से 2 00 ग्राम पीपलामूल का चूर्ण मिलाकर 3-3 रत्ती की गोलियां बनाकर सुखाकर रख लें । इसकी 2-3 गोली रात्रि को सोते समय जल या दूध के साथ लेने से अच्छी नींद आती है ।
उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर ) – सर्पगंधा चूर्ण 2 ग्राम, मुफ्ता शुक्ति पिष्टी 1/2 ग्राम खरल में घोटकर अच्छी तरह मिला लें । यह दो मात्राये हुई । इनमें से एक-एक मात्रा ज़टामांसी के साथ सुबह-शाम दें । जटामांसी 2 ग्राम आधा गिलाम पानी में सुबह भिगो दें । शाम को ऊपर-ऊपर का पानी छान लें । इसी तरह शाम को भिगोकर सुबह छान लें और पिलाएं ।
सर्पगंधा (Sarpgandha) चूर्ण 50 ग्राम मुक्ताशुक्ति पिष्टी 10 ग्राम, बेल पत्र 50 ग्राम, शिलाजीत 10 ग्राम को खरल में डालें । फिर जटामांसी और शंखपुष्पी के क्याथ को थाड़ा-थोड़ा उसमें डालते हुए घोटें । अच्छी तरह घुट जाने पर मटर के बराबर गोलियां बनाकर छाया में सुखा ले । मात्रा – 2-2 गोली दिन में 3 बार पानी के साथ । क्वाथ-जटामांसी और शंखपुष्पी 10-10 ग्राम लेकर एक गिलास पानी में पकाएं जब चौथाई पानी शेष रहे तो छान लें । बस इसी गाढे-गाढे क्वाथ में उपर्युक्त दवाएं घोटें ।
सर्पगंधा 50 ग्राम, खुरासानी अजवाइन 50 ग्राम, जटामांसी 25 ग्राम पीस कर महीन चूर्ण बना ले। फिर सबसे दुनी मात्रा में मिश्री पीस कर मिला दें ।
मात्रा 3-4 ग्राम सोने से 2 घंटे पहले ठंडे पानी से खायें । मात्रा 2-3 ग्राम सुबह शाम पानी के साथ । उपरोक्त तीनों प्रयोगों से रात्रि में निद्रा भी अच्छी आती है ।
उन्मादहर वटी – सर्पगंधा 250 ग्राम, शंखपुष्पी 150 ग्राम, जटामांसी . 50 ग्राम, कालीमिर्च 20 ग्राम का चूर्ण बनायें । 100 ग्राम बादाम को भिगोकर छिलका उतार लें । 100 ग्राम मुनक्का के बीज निकाल डालें । अब मुनक्का और बादाम को इमामदस्ते में डालकर अच्छी तरह कुचल लें । फिर उसी में ऊपर लिखा चूर्ण थोड़ा-थोड़ा मिलाते रहे और कूटते रहे । यदि खुश्क रहे तो इसीमें घ्रतकुमारी का रस मिला दें । कूटते कूटते यह सब अच्छी तरह मिलकर महीन हो जाएंगे और गोली बनाने लायक हो जाएंगे । फिर मटर से कुछ बडी गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें । मात्रा – 3 से 4 गोलियां सुबह-शाम गाय या बकरी के दुध के साथ दें । 40 दिन का प्रयोग पर्याप्त रहता है । आवश्यकता समझे तो कुछ दिन और देते रहें ।
यह गोलियां मन-मस्तिष्क के लिए शामक व शक्तिवर्धक हैं । बौद्धिक काम करने वाले छात्रों आदि के लिए भी उपयोगी हैं । मात्रा 1 से 2 गोली तक दिन में 2 बार । अच्छी निद्रा लाने के लिए 2-3 गोलियां सोने से 2 घंटे पूर्व ताजे जल से ले ।
सर्पगंधा (Sarpgandha) को हमेशा डॉक्टर की सलाह पर लेना चाहिए लेकिन ज्यादा मात्रा में इसे लेने पर यह नुकसान पहुंचा सकता है।
- बच्चे – 250 मि.ग्रा. (1 टैबलेट)
- वयस्क – 500 मि.ग्रा. से 750 मि.ग्रा. (2 या 3 टैबलेट)
FAQ :
Q1. सर्पगंधा कहा पाया जाता है ?
Answer : सर्पगंधा हिमालय की तराई, पंजाब, देहरादून, गोरखपुर, पटना, भागलपुर, नेपाल की तराई, आसाम, मद्रास, दक्षिण महाराष्ट्र, कन्नड़ प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में प्रचुरता से पाया जाता है ।
Q2. सर्पगंधा के फायदे ?
Answer : सर्पगंधा प्राचीन काल से ही अनिद्रा तथा उन्माद आदि रोगों पर प्रयोग की जाती रही है | पिछले अनेक वर्षों से इसके गुणों को जानमान कर अनेक मानसिक स्तिथीयो ओर रक्तचाप आदि पर विश्वभर में इसका व्यापक प्रयोग होने लगा है । यह तिक्त, कटु, रुक्ष, उष्णवीर्य, निद्राकर, शूलहारी, दीपन, पाचन, मानसिक विक्षोभ नाशक, हृदयावसादक तथा उन्माद, मिरगी, विभिन्न मानसिक रोगों तथा भ्रम आदि को दूर करने वाली है ।
Q3. सर्पगंधा असली है या नकली इसकी पहचान कैसे करे ?
Answer : बाजार में सूखी सर्पगन्धा में मिलावट हो सकती है । इसकी जड़े प्राय: ¼ से ½ इंच मोटी हो सकती है | रंग पीलापन लिए मटीला भूरा व ऊपरी छाल वैसी ही लगभग नर्म होती है जैसी कि कार्क मुलायम रहती है । इन पर लम्बाई की तरफ़ सीधी दरारे सी नजर आती हैं । टुकडों को तोड़ने पर अन्दर की लकडी सफेद और उसमें स्पंजी छेद जैसे दिखाई पडते हैं । इनका स्वाद कडवा होता हैं पर खुशबू-बदबू कुछ नही होती है।
Conclusion :
सर्पगन्धा विश्वप्रसिद्ध भारतीय वनस्पति हे । इसका बहुत अधिक मात्रा में विदेशों को निर्यात किया जाता है । यह हिमालय की तराई, पंजाब, देहरादून, गोरखपुर, पटना, भागलपुर, नेपाल की तराई, आसाम, मद्रास, दक्षिण महाराष्ट्र, कन्नड़ प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में प्रचुरता से पाई जाती है । निर्माण शालाआं की मांग को देखते हुए अब इसकी खेती भी की जाती है । इसके बीज भी बोए जाते है और यह शाखाओं को काट करके भी लगाई जातीं है । आमतौर से इसकी जडे प्रयोग में आती हैं किन्तु टहनियों और पत्तों में भी इसके क्रियाशील तत्त्व पाए जाते है और इसकी अनेक जातियां हैं ।
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